Sunday, April 3, 2016

“ नदिया पार हिंडोलना ”, रमेशराज का चर्चित “ दोहा-शतक “





“ नदिया पार हिंडोलना ” रमेशराज का चर्चित “ दोहा-शतक “

+रमेशराज
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कबिरा माला कौ नहीं, अब रिश्वत कौ जोर
कर पकरै, अँगुरी गिनै, धन  पाबै चहुँ ओर । 1

कबिरा आज समाज में ढोंग बना टेलेंट
मृग की कुण्डलि में बसै कस्तूरी कौ सेंट। 2

भगतु सँवारी कामियाँ इन्द्रिन कौ लै स्वाद
भक्ति हो गयी काममय जाकौ अन्त न आद। 3

भोग-चढ़ावा राम पै मोकूँ लागै मीठ
मैं का जानूँ राम कूँ नैनूँ कबहू न दीठि। 4

+जाति-धर्म  के नाम पै कबिरा हिन्सा होय
ढाई आखर प्रेम कौ आजु न सीखै कोय। 5

+सब इन्द्रिय सुख भोगते साधु -संत या ऊझ
कौनु मरै मैदान में अब इन्द्रिन सूँ जूझ। 6

+तस्कर अब गुरुवर भये कबिरा कौ गहि ज्ञान
काम क्रोध तृष्णा जिन्हें आज बने भगवान। 7

संतु विदेशी चैक लखि रखै सँजोय-सँजोय
मन मथुरा, दिल द्वारिका, काया काशी होय। 8

+दीन-धर्म  के नाम पर कबिरा हिन्सा भाय
 हिन्दू मारै राम कहि, मुस्लिम बोल खुदाय। 9


+कबिरा गुरु या साधु  से कहा सीखिए ज्ञान
सब कुर्सी के लालची, सब सत्ता का स्वान। 10

साधू सोचै स्वयम् कूँ गद्दी पर बैठारि-
स्वान रूप संसार है भौंकन दै झकमारि11

ऊपर-ऊपर ही रह्यौ कबिरा सबकौ ध्यान
को देखै तलवार कूँ जब सोने की म्यान। 12

कबिरा अब तौ साधु  को हरि-रस है बेकार
 सत्ता-रस ऐसौ पियै कबहू न जाय खुमार। 13

संत कमंडल भरि लयी छल-फरेब की खीर
मन से ठगई लूट की मिटै न प्यास कबीर। 14

कबिरा आप ठगाइये बदल गयी यह रीति
मक्कारी जग में बनी सुख की आज प्रतीति। 15

आब मिलै-आदर मिलै, पावै अति सत्कार
मनुज लूट की सम्पदा दान-पुण्य कछु डार। 16

निन्दक नियरे का रखें आँगन कुटी छबाय
अब परिजन ज्यों कोयला तुरत दाग दै जाय। 17

आज बोलते सभ्य-जन विष में शब्द भिगोय
खुद को शीतलता मिलै और न शीतल होय। 18

दुष्ट न छोड़ै दुष्टता भले जताऔ नेह
सूखा काठ न जानही  कबहू बूठा मेह। 19

ऊँचे कुल कूँ छोडि़ए सब बातें बेकार
ऊँचे पद के कारणे बंस बँधा  अधिकार। 20

इतनौ सौ कबिरा रह्यौ अर्थ प्रेम कौ आज
शीश उतारें हम नहीं, सिर्फ उतारें लाज। 21

लोग सराहें, हों भले गंधहीन-गुणहीन
कहें धतूरे को कमल माया के आधीन। 22

मुख पर आये मित्र के कई अजनबी रंग
काम पड्या यूँ छाँड़सी ज्यों कैंचुली भुजंग। 23

जहर घुला-पानी मिला दूध बिके बाजार
तृषावंत जो होइगा पीयेगा झकमार। 24

कबिरा जे जो सुन्दरी जाणि करौ व्यभिचार
घर लाबत धन देखिकैं खुश होवैं भरतार। 25

जाहि झुकावैं शीश हम, वो ही माँगे सीस
का मन कूँ मैदा करें कबिरा अब हम पीस। 26

कबिरा अब अखबार में चुटकी-भर सच नाहिं
राई कूँ पर्बत करें, पर्बत राई माहिं। 27

कबिरा आज सगेनु सों द्वन्द्व-युद्ध नित होय
परनारी भ्राता-पिता अपनावै हर कोय। 28

सम्पत्ति जन की लूटकर मानत है मन मोद
मुल्क चबैना सेठ का कछु मुँह में-कछु गोद। 29

घर जालौ, घर ऊबरौ, घर असीम धन  आय
एक अचम्भा जग भयौ घर कौ बीमा पाय। 30

माया दीपक नर पतँग संकट नहीं पडंत
रिश्वतखोरी में फँसें, रिश्वत दै उबरंत। 31

स्वामी सेवक एकमत, कौन इन्हें हड़काय
बिन रिश्वत रीझें नहीं, रीझें रिश्वत पाय। 32

कबिरा ये जग हो भले छिन खारा, छिन मीठ
मान और अपमान तजि मजा लूटते डीठ। 33

चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय
आज विश्वबाजार में साबुत बचा न कोय। 34

कथित राम के राज खुश सत्ता के सुग्रीव
रुखी-सूखी हू छिनी भूखे सोवैं जीव। 35

घोटाले नेता फँस्यौ जब सत्ता-पद खोय
तम्बोली के पान-सौ दिन-दिन पीलौ होय। 36

चोर-उचक्के बन गये नेताजी के खास
जो जाही को भावता सो ताही के पास। 37

मसि कागद छूए न जो, कलम गहे नहिं हाथ
शिक्षामंत्री बन गये पद-गौरव के साथ। 38

चोर उचक्के गिरहकट तस्कर मालामाल
लाली आज दलाल की जित देखौ तित लाल। 39

रामराज्य छल ही रह्यौ, केवल सत्ता भाय
पाणी ही ते हिम भया, हिम है गया बिलाय। 40

नेता अफसर धनिकजन भेजें पूत सिहाय
नदिया पार हिंडोलना अमरीका कौ भाय। 41

कबिरा लहर समन्द की मोती बिखरे आय
नयी आर्थिक नीति पर हर दलाल हरषाय। 42

अमरीका की नीति को रोज नबावै माथ
काया विहँसै हंस की पड्या बगाँ के साथ। 43

नेता पक्ष-विपक्ष के सब सत्ता के भूप
जिनके मुँह-माथा नहीं और न कोई रूप। 44

मंत्री  आबत देखकर साधुन करी पुकार
हम फूले हमकूँ चुनौ संसद में सरकार45

मंत्री और दलाल सँग चमचा शोभित होय
तीन सनेहू बहु मिलें, चौथे मिलै न कोय। 46

आदि-अन्त सब सोधियाँ  कबिरा सुनि यह काल
पद-कुर्सी ही सार है और सकल जंजाल। 47

विश्वबैंक अमृत चुबै पावै कमल प्रकास
अमरीका की बन्दगी करते डॉलर-दास। 48

सतगुरु रीझि तहल्लका बोलौ एक प्रसंग
डालर ला, मैं बेच दूँ भारत कौ अँग-अंग49

सत्तापक्ष-विपक्ष कौ जन समझे नहिं सार
गुरु-गोबिन्द तो एक हैं दूजा यह आकार। 50

हंसों को लगते भले उल्लू के हुड़दंग
सुन रहीम अब तौ निभै बेर-केर कौ संग। 51

रहिमन ये नर और सों माँगन कछू न जायँ
भगवा-वसनी लूटकर ऐश करें गरबायँ। 52

रहिमन बिपदा हू भली जो थोड़े दिन होय
मजा लूट का उम्र-भर, सजा न देखे कोय। 53

सुन रहीम मँडरात अब सत्ता के जिन-प्रेत
गिद्ध  गहत निर्जीव कह, बाज सजीव समेत। 54

सम्पति लूटन में सगे बने सेठ बहुरीति
मल्टीनेशन से बढ़ी आज स्वदेशी प्रीति। 55

आज धर्म के नाम पर बधिक प्राण यूँ लेत
मृग जैसे मृदुनाद पर रीझि-रिझि तन देत। 56

इनकूँ कितनौ हू मिलै सुनि चंदन को संग
पर रहीम बदलें नहीं, रहें भुजंग, भुजंग। 57

कहा सराहें प्रीति के स्वारथमय मजमून
बिन पानी सुर्खी कहाँ पावें हल्दी-चून। 58

घडि़याली आँसू बहा नेता पल में देई
रहिमन अँसुआ नैन ढरि अब छल प्रकट करेई। 59

सज्जन के भ्रम में यहाँ ठगे जात हर बार
रहिमन अब का पोइये टूटे मुक्ताहार। 60

जब तक सत्ता साथ है तब तक मद से  छोह
जाल-परे जल जातु बहि तजि मीनन कौ मोह। 61

न्याय आज अन्याय कौ छुप-छुप माखन खाय
मुंसिफ चोर-डकैत को भीर परे ठहराय। 62

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान
तरुवर-सरवर कौ करें दोहन चतुर सुजान। 63

धन  पर रीझे डाक्टर आवत देखि अपार
रहिमन गहै बड़ेन कूँ लघुन बरांडे डार। 64

नोचें लाशें न्याय की महाभोज-सौ होत
गिद्धन में भारी खुशी बढ़त देखि निज गोत। 65

स्वारथ देखे स्वारथी हर पल बदी सुहाय
रहिमन धागौ प्रेम को तुरत देतु चटकाय। 66

रहिमन ओछौ नर तुरत ओछे कूँ गहि लेतु
जब भी चाटै मैम कूँ स्वान बहुत सुख देतु। 67

जो चिपकौ है लौन-सौ ईंट-ईंट बन रेह
बाहि निकारौ गेह ते भले भेद कहि देह। 68

रहिला-मैदा काहु की ले जूठन हरषाय
रहिमन मन मैला नहीं, जा नर भीख सुहाय। 69

फँसे तहलका में कई अब का राखें गोय
सुनि अठिलैहें लोग सब, जगत हँसाई होय। 70

मेरी भव बाधा  हरौ राधा  नागर सोय
भगतु कहै अब जगत की मिलै सम्पदा मोय। 71

आज विरागी बोलतौ-‘प्रभु लाऔ तर-माल
इहि बानक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल72

कहै भगतु लखि उर्वशी-‘इसको छोडूँ मैं न
हरि नीके नैनानु तैं हरिनी के शुभ नैन। 73

चटक न छाँड़त घटत हू ऐसौ नेहु गँभीरु
फीकौ पड़ै न गेरुआ रँग्यौ मोह को चीरु। 74

यही आधुनिक धर्म  हैयह युग की पहचान
बसै बुराई जासु तन, ता ही कौ सम्मान। 75

अब नर तजि आदर्श कूँ, हर मर्यादा खोय
जै तो नीचै ह्वै चलै, तै तौ ऊंचौ होय। 76

नीच करम से पाय धन  नर बेहद गरवाय
बढ़त-बढ़त सम्पति सलिलु मन सरोज बढि़ जाय। 77

बुरी बात चाहे बँधे  यति गति लय तुक छंद
राखौ मेल कपूर में हींग न होय सुगंध। 78

ये जग काँचै काँच-सौ, मैं समझौ निरधार
अब जान्यौ बस दाम ते सकल ठोस संसार। 79

ठग-डकैत-बदकार पर जन विश्वास न आत
बुरौ बुराई जो तजै तौ चित खरौ डरात। 80

अवगुन चीन्है और में अपने अवगुन नाहिं
ज्यों आँखिन सब देखिए आँख न देखी जाहिं। 81

कहत नटत रीझत खिजत मिलत खिलत लजियात
नारी को अब पुरुष की भारी जेब सुहात। 82

बड़े है गये गुनन बिन मूरख इस युग आय
कहतु धतूरौ-‘मैं कनक, गहनौ लेउ गढ़ाय83

भले बहू हो कर्कशा मन में हो छल-छंद
घर में लाय दहेज बहु काहि न करत अनंद। 84

अबला बधु को यूँ दिखें आज सास औनंद
अधिक अँधेरौ ज्यों करत मिलि मावस रवि-चंद। 85

चोर लुटेरे ठग चलें सबै बनावन मित्त
रज-राजसहिं छुबाइकैं नेह चीकने चित्त। 86

आज स्वदेशी रूप में बसी विदेशी गंध
संगति सुमति न पाबही परे कुमति के धंध । 87

दुसह दुराज प्रजान कौं क्यों न बढ़ै दुख-द्वन्द
गद्दी पर बैठे यहाँ अन्धे  औमति-मंद।

सत्ता तक लायी उन्हें, राम-राज की सोधि
पाहन नाव चढ़ाई जिहिं कीने पार पयोधि | 89

विश्वबैंक कौ सूर्य जब चमकौ भारत माहिं
देखि दुपहरी जेठ की छाहौ चाहति छाँहि। 90

अधर धरत  नेतहिं परत ओठ डीटि पट ज्योति
विश्व बैंक की बाँसुरी इन्द्रधनुष रँग होति। 91

अपने कुल कौ जानि कैं नृपवर प्रखर  प्रवीन
अमरीका की गोद में झट भारत धरि दीन। 92

काँगरेस अरु भाजपा खिले एक ही डाल
आजु मिले सु भली करीकहते फिरें दलाल। 93

नहिं पराग नहिं मधुर मधु , नहिं विकास यह काल
आज उदारीकरण में सूख गयी हर डाल। 94

या सत्ताई चित्त की गति समझै नहिं कोय
नये करों के बोझ से चित्त करै खुश होय। 95

जन में  बढ़ै विलासता, मादकता औभोग
क्यों न दबावै तब उन्हें पापी-राजा-रोग। 96

अहंकार अफसर लखें, रहें सबै गहि मौन
पद को करें सलाम सब, अवगुन देखै कौन। 97

मन में इसके चाह थी मिलै कमल-सी आब
फूल्यौ अनफूल्यौ भयौ कीचड़ माहिं गुलाब। 98

अलग-अलग दल हों भले, सब सत्ता के घाघ
संसद में एकहिं लखत अहि मयूर मृग बाघ। 99

कुर्सी से अफसर नहीं गाल चीकने कोय
ज्यौं-ज्यों बूढ़े पद सहित त्यों-त्यों थुलथुल होय। 100

सोहत ओढ़े पीत पट आज  सलौने गात
विश्व बैंक के कर्ज से लावन जुटे प्रभात। 101

अंकल चिप्सन खाय कैं पीकर मिनरल नीर
मंद-मंद संसद चल्यौ कुंजर गैटसमीर। 102

एक फस्यौ बोफोर्स में, एक तहलका जान
सत्ता पक्ष-विपक्ष में रह्यौ भेद नहिं आन। 103

गहरी नींद-अफीम सौं जिस दिन जगे अवाम
जप माला छापा तिलक सरै न एकौ काम। 104
+रमेशराज
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-२०२००१

मो.-९६३४५५१६३० 

Friday, April 1, 2016

‘ जो गोपी मधु बन गयीं ‘ + रमेशराज का यमकदार दोहा-शतक






‘ जो गोपी मधु  बन गयीं ‘

+ रमेशराज का यमकदार दोहा-शतक
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जो बोलै दो  हे! हरी अति मधु रस अविराम
शहद-भरे दोहे हरी!  उस राधा  के नाम। 1

यही चाँदनी रात में खेल चले अविराम
राधा  मोहें श्याम कूं, राधा  मोहें श्याम। 2

जग जाहिर है आपका मोहन-मधु करनाम
मन काहू के तुम बसौ मन  काहूके श्याम। 3

भये एक का प्रेम में, भूले सुधि  बुधि  नाम
राधा , राधा  बोलती, श्याम पुकारें श्याम। 4

करुँ प्रतीक्षा आपकी हुई सुबह से शाम
काजल, का? जल बीच ही और बहैगौ श्याम? 5

प्रेम-रोग तोकूँ लगौ अबहि मिले आराम
मन में लीनौ पीस कल, दवा पी सकल श्याम। 6

लखि राधा  का रूप नव हँसकर बोले श्याम
तेरे तौ ऐनक चढ़ीऐ नकचढ़ी सलाम7

कान्हा से मिल सुन सखी जब लौटी कल शाम
का बोलूँ जा जगत की, मैं जग तकी तमाम। 8

मनमानी अब ना करें मैं मन मानी श्याम
सिद्धि  पा रखी श्याम पर, बड़े पारखी श्याम। 9

जब देखौ तब रटत हैं राधा -राधा नाम
कस्तूरी-मृग से भये, कस  तू  री! वे श्याम। 10

ऐसे बोले विहँसकर वहाँ सखी री श्याम
जो गोपी मधु बन गयीं, मधु   बन गयीं तमाम। 11

बोली नन्द किशोर से खबरदार इत आ न
मैं काफिर, का? फिर हँसी, श्याम गये पहचान। 12

तन का, मन का अब सखी सुन सिंगार होना न
इसीलिये सोना न अब, हरि जैसा सोना न। 13

राधे  मत लग वान-सी, यूँ काजल लगवा  न
घायल मन मेरौ करै, मन्द-मन्द मुस्कान। 14

हरि बोले तू चंचला, मधुजा, रस की खान
सखि रति के उनवान पर करुँ निछावर प्रान। 15

मैं लेकर साबुन गयी जमुना-घाट नहान
प्रेम-जाल-सा बुन गयी मोहन की मुस्कान। 16

करें कृपा नैना तनिक नैनों को समझा न!
चितवन, चित बन कर लगै जैसे कोई वान। 17

बोल सदा तू प्रेम के बोल सके तो बोल
अपने मतलब के लिये, मत  लब राधे  खोल। 18

हम अरहर के खेत हैं खुशी न आज टटोल
बरसे पाला-कोहरा, दिखे को? हरा बोल। 19

मीठै बैना बोलि कैं इत मधु  रह्यौ टटोल
कान्हा जैसे मधुप  री ! मैं मधु परी अमोल। 20

करौ इशारौ श्याम ने, ली मैं पास बुलाय
करतब, करि कर तब गये तन से दिये छुबाय। 21

इन्द्रधनुष-सी बाँसुरी हरि के अधर सुहाय
मटके पर मटके  हरी मटके नारि बजाय। 22

बोल बाँसुरी के मधुर हमकूँ अगर सुनाय
बिना भरे गागर भरे, कान्हा गा गर जाय। 23

राधा सूखै रेत-सी, नागर, ना गर आय
मिलै नदी-सी श्याम से, सागर-सा गर पाय। 24

आयी थी राधा  इधर  दूंगी श्याम बताय
हरि तेरे इत ना सखी, मत इतना हरषाय। 25

लगा ठहाके दाद दे कान्हा मन मुस्काय
इत राधा  दो हा कहै उत हा-हा बन जाय। 26

हरि-सा धन  सखि का मिलौ, मन से साध न जाय
बढ़ी पीर मेंपी रमें प्राण और हरषाय। 27

सखी श्याम मैं का? गही, चित कूँ मिलनौ भाय
मन की बात मुँडेर पै कहै काग  ही आय। 28

तरसूँ मीठे बोल को दिखें श्याम इस बार
रसना से रस  ना मिलै तन न होय झंकार। 29

पल में जलते दीप की दुश्मन बनी बयार
जहाँ नहीं दीवार थी बाती उत दी  वार। 30

मिलने से ज्यादा विरह दे मन को झंकार
अग्र नहीं अनु’, सार है बढ़ी प्रीति अनुसार। 31

इत चमकी है बीजुरी यहीं गिरी है गाज
मनमोहन को वेद  ना, यही वेदना आज। 32

बात छुपाऊँ , मन घुटै, अगर बताऊँ  लाज
कल मन की कल खो गयी, मिली न कल, कल-आज। 33

जो सुखदा, सुख-सम्पदा, जिसके मोहक साज
एक नदी बहती जहाँ, एक  न  दी आवाज़। 34

आज मिलें हर हाल में जिन लीनौ हर हाल
मन से नमन उन्हें करूँ जिन्हें न मन कौ ख्याल। 35

जहँ पराग जहँ मधुर मधु  जहँ विकास हर काल
सूख गये वे ताल क्यों आज कहो वेताल। 36

मैली नथ खींची तुरत औरु दयी नव डाल
सखि हँसकर बिन दी हमें, वो ही बिन्दी भाल। 37

बौर प्रेम कौ जहँ नहीं और न फलें रसाल
आ  री!, आरी ला सखी काट दऊँ  वह डाल। 38

नीबू-अदरक की तरह भले प्यार तू डाल
तेरे पास न हींग है, नहीं गहै हरि दाल। 39

राधा  झूला झूलती जहँ अमुआ की डाल
आहों से पा मुक्ति तहँ आ होंसे नंदलाल। 40

मैं खुशबू देती नहीं यह आरोप न पाल
मुझको हरि आ रोप तू, ज्यों गुलाब की डाल। 41

बौरायी-सी तू लगै ज्यों अमुआ की डाल
अरी कोमला!, को? मला तेरे गाल गुलाल। 42

सखि मेरे मन बढ़ गयी मादकता-मधु -प्यास
इत आया बद मास था उत आया बदमास। 43

मोहन मेरे पास हैं, मैं मोहन के पास
मन में घनी सुवास सखि, मोहन करें सुवास। 44

यहँ मुरली प्यारी बजै, भली पिया के पास
नहीं तान गर, ता नगर तौ क्यों चलूँ सहास। 45

आँखिन-आँखिन में गये मन को श्याम भिगोय
राधा  मन में लाज भरि सहमत, सहमत होय। 46

बाँहिनु-बाँहिनु डालकर अरी झुलाऊँ  तोय
इत झूले तू डाल ना! उधर  डाल ना कोय। 47

बहुत उनींदी आँख हैं मुख धोवन दै मोय
कैसे जाऊँ  जगत ही, जगत हँसाई होय। 48

गाय मल्हारें प्रेम की कान्हा झोटा दीन
ग़जब भयौ उत री सखी! चढि़ झूला उतरी न। 49

पत्र लिखौ जो श्याम कूँ लियौ ननद ने छीन
मो पै सखि कालिख लगी, मैंने का? लिख दीन। 50

मेरे मन की श्याम ने पीड़ा लखी, लखी न
मैं आहत जित हीन थी फाह रखौ उत ही न। 51

मन बौरायौ-सौ फिरै मेरी अब चलती न
प्रेम कियौ गलती करी, घनी पीर गलती न। 52

अब सर ही मेरौ फटै रति को अबसर ही न
रोग जान का री सखी! उन्हें जानकारी न। 53

प्रियतम को प्रिय तम लगे, करे न दिन में बात
मीठे बोलै बोल तब, जब गहरावै रात। 54

मैंने देखी श्याम की चीते जैसी घात
हरिना-से हरि ना सखी, बोल न ऐसी बात। 55

का कीनौ उत्पात जो मसले-से उत पात
अरे देबता, दे बता कहा भयौ बा रात। 56

गजब भयौ बा रात में, जबहिं चढ़ी बारात
कान्हा फेरे लै गयौ नाचत में सँग सात। 57

‘‘प्रेम-अगन में मैं जलूं  बिन राधा  दिन-रात’’
काफिर ने का? फिर कही सखि तुझसे ये बात? 58

दहूँ, कहूँ ना चैन अब, तन-मन भये अधीर
कैसा सखी मज़ाक है, मज़ा कहै तू पीर? 59

नैननु पे नैनानु के चले रात-भर तीर
सखि लायी में रात भर, इन नैननु में नीर। 60

मिलें श्याम या ना मिलें खुशी बँधी  तकदीर
इतनी की है प्रीति सखि, इत नीकी है पीर। 61

यूँ वियोग कितना लिखा और सखी तकदीर
प्रेम लगा अब महँकने, दयी महँक ने पीर। 62

रात-रात-भर जागकर इत ही झाँकें लोग
घटना से घटना भला सखी प्रेम का रोग। 63

मिले खुशी में अति खुशी, बिछडि़ रोग में रोग
सखि ऐसे सह योग को, कौन करे सहयोग। 64

मैंने कीनौ श्याम-सँग रति का विष-सम भोग
मन में दर्द नये  न  ये, बहुत पुराना रोग। 65

मैं तो सखि चुपचाप थी मन में दर्द न ताप
जाने कब हरि का लगा तीर रखा चुप चाप। 66

प्रीति-प्यार में देखिए कागजका? गज नाप
ढाई आखर प्रेम का पढि़ लीजे चुपचाप। 67

आँखें मेरी नम न थीं और न मन में ताप
पाया शोक अथाह अब, प्रीति बनी अभिषाप। 68

पूजा को मंदिर गयी, मैं थी प्रेम-विभोर
परिसर में परि सर गये सखि री नंदकिशोर। 69

मेरे ही अब प्राण ये रहे न मेरी ओर
सखि मैं अब के शव भयी बँधि  केशव की डोर। 70

श्याम न आये आज सखि, आबन लगौ अँधेर
कागा  का? गा कर कही भोरहिं बैठि मुँडेर। 71

सिर्फ उबालै दूध तू पड़ी खीर के फेर
समाधान ये है सखी, समा धान कछु गेर। 72

पाती में पाती नहीं, पाती, पाती फेर
वे मधुकर हैं आज मन शंकाएँ-अंधेर।  73

मन के सारे खेत हैं सूने बिना सुहाग
अब को ला हल देत है, बस कोलाहल भाग। 74

खिले फूल-सी जिन्दगी, नवरंगों के राग
श्याम दियौ दिल बाग में, तब ही से दिल बाग। 75

बोल न ऐसे झूठ तू, गये विदेश सुहाग
सखि क्यों बरसाने लगी, बरसाने में आग। 76

अब न तरेरैं श्याम भौं, अब मटकावै भौंन
मन तौ राधे  सू रमा, कहै सूरमा कौन। 77

मोहि रीझि मुसका सखी श्याम आज देखौ न
हमला वर पर हो गया, हमलावर पर कौन ? 78

गिरूँ, घिरूँ मैं लाज में, आऊँगी बातों न
दूँगी अब में श्याम के कर में, कर मैं यों न। 79

जब से मिलि घनश्याम से लौटी अपने गाँव
धरती पर धरती कहाँ राधा  अपने पाँव। 80

राधा  जो वन जाय तो महके जोवन पाय
बढ़ती आभा फूल की जितना मधुप चुराय। 81

मुस्कानें डाँटें डपट, कोप कपट मन भाय
प्रेम-भरे अनुभाव की हरषै  हर शै पाय। 82

रात भयी अब मैं चलूँ, लेना कभी बुलाय
ऐसे कसम न दे मुझे जो कस मन ये जाय। 83

बात बुरी भी प्रेम में हरि के मन को भाय
कान्हा को कानाकहै राधा  अति हरषाय। 84

रति का गया घनत्व बढि़ तनिक सहारे पाय
दर्द आज अलगाव का नहीं सहा  रे! जाय। 85

यूँ न टोक री! बाय जो लिये टोकरी जाय
इसी बहाने गुल चुनै, मिलें श्याम हरषाय। 86

मन में जलें चराग-से, दिपै प्रीति की लोय
मिलकर पा रस री सखी कंचन काया होय। 87

सखी बता कान्हा कह्यौ का री! कारी मोय?
नहीं कहा ऐसे सखी, बोल्यौ कोयल तोय88

बात-बात में यमक है सुन रे कान्हा बात
तोकूँ राधा  यम  कहै मन्द-मन्द मुस्कात। 89

एक बार तो आ गले मिलि मोसे तू पीय
भले पीर फिर मन भरै, जरै आग ले हीय। 90

इत कान्हा पाती लिखी-‘मिलने आऊँ  मैं न
पा उत्तर, उत तर हुए दो कजरारे नैन। 91

बिना पिया नैननु भरी अब तो पीर अथाह
ताकत, ताकत में गयी सूनी-सूनी राह। 92

बिना बजे ही बज रही मन में मधुर मृदंग
को रीकोरी चूनरी डालौ ऐसौ रंग। 93

सुनि री सखि मैं ना मरी लेत नाम री श्याम
यति-गति-लय छूटी, मिले सुख को पूर्ण विराम। 94

छूबत ही जाऊँ  बिखरि छूत मत मोहि निहारि
मैं तो जैसे ओस नम, सुन ओ सनम मुरारि। 95

मिलि हरि सौं ऐसौ लगै आयी तन को हारि
अब उठती मन हूक-सी, मनहू कसी मुरारि। 96

मेरा जी है श्याम में, राजी सौत मुरारि
देति निगोड़ी बाँसुरी मन को रोज पजारि। 97

घने तिमिर में आ गये कान्हा बनकर नूर
साँसों की सरगम बजी, सर  गम से अब दूर। 98

भयी प्रफुल्लित देख हरि, लोकलाज-डर दूर
कायम, का? यम की रहें अब शंकाएँ क्रूर। 99

मिली श्याम से, मैं गयी अपनी सुधि -बुधि  भूल
सरकी, सर की चूनरी, सरके सर के फूल। 100

बिना श्याम फीकौ परौ तन कौ-मन कौ ओज
मैं अबला, अब  ला सखी कोई औषधि  खोज। 101

मन को सूखा देखकर राधा  करी अपील
इधर  आब ना, आ बना दरिया-पोखर-झील। 102

कुम्हलाये या नित जले, चाहे जाये रीत
देती है फिर भी तरी, बसी भीतरी प्रीत। 103

हँसी-खुशी तक ले गये हरि राधा  की लूट
देख पीय ना, पीय ना जल के हू दो घूँट। 104

ओ मेरे मन बावरे काहे भगै विदेश
मिलता-जुलता देश जो, मिल ता जुल ता देश। 105

आँखिनु-आँखिनु में हरा, आँखिनु-आँखिनु तोड़
ना रे बाजी जीत लै, नारेबाजी छोड़। 106

खेल-खेल में  खेल मैं गयी अनौखे खेल
बहुत सखी धुक-धुक करै दो डिब्बों की रेल। 107

वाण चलाये बा! हरी! यूँ नैननु की ओट
भीतर तक अब पीर दे बहुत बाहरी चोट। 108

मोहन के मन में करै घनी प्रीति घुसपैठि
राधा  केसर-सी भयी कान्हा के सर बैठि। 109

टीसों के अनुप्रास हैं साँसों के संवाद
डाली है बुनि  याद ने सखि कैसी बुनियाद। 110

पहले तो सुधि -बुधि  गयी, अब रूठौ है चैन
मिलें अधिकतर, अधिक   तर सखि अपने ये नैन। 111

दीप कभी रख दे  हरी!, खींच ज्योति की रेख
मन की सूनी देहरी रहे न सूनी देख। 112

भयी सखी हरि-प्रेम में सबसे बड़ी अमीर
छू मन तर ऐसौ कियौ छूमन्तर है पीर। 113

जायदाद मन की लिखूँ   जो मन कियौ प्रसून
आय दाद लै जाय वो, जाय दाद मैं दूँ न। 114

तू मुझको भूले नहीं, मैं तुझको भूलूँ न
खुशी-खुशी उर दून कर वर्ना मैं उर दू न। 115

इन कुंजन हरि-प्रेम को भूलूँगी कबहू न
जी वन में ऐसी खुशी जीवन बना प्रसून। 116

अतिगर्जन, घन, बीजुरी, कुछ भी रहा न ध्यान
भीग गयी छत री सखी तो ली छतरी तान। 117

चिन्ता मोहि बुखार में तपै न तेरे प्रान
क्यों  भीगी छत री सखी, लेती छतरी तान। 118

मेरौ मन मधु रस भरौ अति अद्भुत अनमोल
तन की मत आँकै हरी!, मन की कीमत बोल। 119

कबहू आँखें बन्द रखि, कब हू आँखें खोल
करै कीर्तन कीर-तन राधे -राधे  बोल। 120

चीख करूँ अति नाद मैं या देखूँ चुप नाद
खलको तू स्पष्ट करि सखि इतनी फरियाद। 121
+रमेशराज
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