Rameshraj
शृंगाररस के दोहे [ रमेशराज ]
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नैन मिले ऐसे दिखी मुदित कपोलों लाज
खिलें कमल की पाँखुरी धीरे-बेआवाज़ |
+रमेशराज
दियौ निमन्त्रण प्रेम का गोरी ने मुसकाय
और लियौ मुख फिर तुरत घूँघट-बीच छुपाय |
+रमेशराज
भेजा जो खत में उसे मिलने का पैग़ाम
मुख पर अंकित हो गयी सुबह-दोपहर-शाम |
+रमेशराज
मिलत नारि लाजियाय यूं दिखें स्वेद के कोष
ज्यों गुलाब के फूल पर चमक रही हो ओस |
+रमेशराज
नैननु के संकेत पर प्रियतम यूं लजियाय
ज्यों गेंदा के फूल की डाल सखी झुक जाय |
+रमेशराज
लजियाना कुछ बोलना फिर हो जाना मौन
इसी अदा पर आपकी भला न रीझे कौन |
+रमेशराज
हरजाई की एक से क्या निभती सौगंध
नदी-नदी को पी गये सागर के अनुबंध |
+रमेशराज
वह ऐसे घुल-मिल गयी पल दो पल के बीच
एक बताशा ज्यों घुले झट से जल के बीच |
+रमेशराज
झेल रहा है जबकि मन मंहगाई की मार
मुल्तानी मिटटी लगें तेरे शिष्टाचार |
+रमेशराज
लज्जा से जल-जल भयी गोरी नैन मिलाय
जैसे सिल्ली बर्फ़ की पाकर ताप विलाय |
+रमेशराज
धीरे-धीरे इसतरह उसने त्यागी लाज
छिलका-छिलका उतरती जैसे गीली प्याज |
+रमेशराज
अपने में ही बारहा और सिमटती जाय
हल्के-से स्पर्श पर लाजवान्ति लाजियाय |
+रमेशराज
हिम पिघली लज्जा गयी कुछ बतियाये नैन
सागर के आगोश को हुई नदी बेचैन |
+रमेशराज
हर गीले स्पर्श पर वही एक अंदाज
गोरी के मुख पर दिखे ‘चटकफली’-सी लाज |
+रमेशराज
प्रथम मिलन में थी झिझक क़दम-क़दम लाजियाय
अमरबेल अब विटप से लिपट खूब हर्षाय |
+रमेशराज
इक
मासूम सवाल पर
, उसका था यह हाल
एक
इंच ही जल छुआ
, हुआ तरंगित ताल |
+ रमेशराज +
उस
संकोच स्वभाव ने यूं बरसाया मेह
मन
तो सूखा रह गया
, केवल भीगी देह |
+रमेशराज
अति
सिहरन-सी गात में , बात-बात में लाज
बहुत
मधुर उर बीच है सुर सहमति का आज |
+ रमेशराज +
वज्रपात
मत कीजिये
, ले नैनों की ओट
खड़िया
क्या सह पायगी
, प्रियवर घन की चोट |
+रमेशराज
खिली
धूप के रूप-सा , प्रियवर देता भास
संगति-स्वीकृत सांझ-सी , सहज कहाँ सितप्रास |
+रमेशराज
पढ़े
प्रीति की रीति वह बढ़े सुमति-गति और
प्राण
देखना चाहते उन्नति में रति और |
+रमेशराज
मृग-सी भटकन में
नयन मन में मरु-आनन्द
कस्तूरी
बनना हुआ कहाँ हृदय में बंद |
+रमेशराज
अक्सर
अंतर में मुखर रहे रात-भर पीर
कभी
भोग का योग था
, अब वियोग के तीर |
+रमेशराज
फूल
बिना हर डाल है
, ताल हुआ बेहाल
हरे- भरे सपने मरे
, सावन करे कमाल !
+रमेशराज
सुखद
समय की लय बना
, तुझसे परिचय यार
संदल
से पल हों सफल
, महके अविरल प्यार |
+रमेशराज
सूख
गये मन के सुमन
, टूट गया जब सब्र
झिलमिल - झिलमिल दिल
सलिल लेकर आये अब्र |
+रमेशराज
तरल-सजल कुछ प्राण
हों , जीवन का हल मेह
बादल
का जल छल बना
, सूखा मन का गेह |
+रमेशराज
कली
कोपलें केलि बिन
, अब कोयल कूकी न
कलरव
के उत्सव गये
, मन है पल्लव-हीन |
+ रमेशराज
करती वह छवि गाँव की अब भी मन बेचैन
करती वह छवि गाँव की अब भी मन बेचैन
झट
घूँघट पट में गये बेहद नटखट नैन |
+रमेशराज
रैन
दर्द का गुणनफल सुख का योग बनै न
नींद
नहीं अब नैन में कहाँ चैन में बैन |
+ रमेशराज +
झुलसन
में मन के सुमन
, तपन जलन आबाद
तनिक
सलिल मिल जाय तो दिल हो तिल-तिल शाद |
+रमेशराज
दुःख
की तीखी धूप में जब गुम हो मुस्कान
ममता
की छतरी तुरत माँ देती है तान |
+रमेशराज
कुटिल
चाल के खेल में माँ थी बेहद दक्ष
दो
बेटों के बीच झट लिया धींग का पक्ष |
+ रमेशराज +
यही
हमारी ज़िन्दगी
, यही मिलन का सार
गुब्बारे
के भाग में आलपिनें हर बार |
+रमेशराज
दुविधा , गहन उदासियाँ
, आज हमारे पास
हमें
मोड़ पर छोडकर भाग गया विश्वास |
+ रमेशराज +
ताप
सहे लेकिन कहे अली-अली दिन-रात
भली
पली मन बेकली जली कली दिन-रात |
+रमेशराज
आँख
अश्रुमय आह अति
, अंतर और अज़ाब
ख्वाब
आब-बिन आजकल , सूखे हुए गुलाब |
+ रमेशराज +
पंकज-से मन में चुभन
, नयन-बीच तम-रोग
फाग-राग में आग
अब , लिखे भाग दुर्योग |
+रमेशराज
टहनी-टहनी पर मुखर
वर सुवास-मधुप्रास
फल
का पीलापन कहे
-मुझ में मधु का वास |
+ रमेशराज +
नसल
नसल सलगा नसल
, नसल नसल ताराज
सुखद-सुखद अब तो
विलग अलग-थलग है प्यार |
+ रमेशराज +
नसल
नसल सलगा नसल
, नसल नसल ताराज
चुभन
जलन मन में अगन घुटन तपन अंगार |
+ रमेशराज +
नसल
नसल सलगा नसल
, नसल नसल ताराज
महंक-महंक मन दे
चहक, किशन किशन आवाज़ |
+ रमेशराज +
सलगा
सलगा राजभा नसल नसल ताराज
इस
दोहे में री सखी मुखरित यह अंदाज़ |
+ रमेशराज +
भानस
भानस राजभा भानस भानस खेल
या
मन में नित राधिका मोहन की रति-रेल |
+ रमेशराज +
मनमोहन
की प्रीति से जुड़े नयन के तार
अब
हरि बसते प्राण में गया नयन का प्यार |
+ रमेशराज +
सुखद-सुखद जबसे विलग
अलग-थलग है प्यार
चुभन
जलन मन में अगन,
घुटन तपन अंगार |
+रमेशराज
मनमोहन
की प्रीति से जुड़े नयन के तार
अब
हरि बसते प्राण में
, गया नयन का प्यार |
+ रमेशराज +
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रमेशराज,
15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630