Rameshraj
रमेशराज के विरोधरस के दोहे
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फूल
उगाने के लिए खुशबू के जल्लाद
बना
रहे हैं आजकल जनता को ही खाद |
+रमेशराज
जनरक्षा
की ओर अब तू कविता को मोड़,
आयी
जो रुखसार पर लट का झंझट छोड़ |
+रमेशराज
जाति-धर्म का चढ़ गया सब पर आज जूनून
इतना लिखना " बोस " को, अब सफेद है खून |
+ रमेशराज
महक
विदेशी अब लिए देशभक्ति के फूल
भगत
लाजपत की गये हम क़ुरबानी भूल |
+रमेशराज
धनुष
कहे हर तरफ कर वाणों की बौछार
यह
विकास का मन्त्र है, देशभक्त का प्यार |
+रमेशराज
भरी
सड़क पर चीखती द्रौपदि दीनानाथ
बंधे
हुए हैं किसलिए आज तुम्हारे हाथ ?
+रमेशराज
कुर्सी
पाकर बोलते सारे आदमखोर
हमें
अहिन्सामन्त्र को पहुँचाना हर ओर|
+रमेशराज
जकड़
पाँव को बेड़ियाँ देतीं यह पैग़ाम
अपने
शासन में नहीं कोई रहे ग़ुलाम|
+रमेशराज
इधर
फंसे नेता अगर, उधर बरी झट होय
दीपक
लेकर ढूंढ लो दागी मिले न कोय |
+रमेशराज
अब
चाकू के पास है उत्तर यही सटीक
मेरे
शासन में रहें सब खरबूजे ठीक |
+रमेशराज
गयी
गरीबी देश से सब हैं खातेदार
अब
भारत सम्पन्न है कौन करे तकरार |
+रमेशराज
झंडे
पाकिस्तान के लहरें चारों ओर
नाच
रहा मदमस्त हो गठबंधन का मोर |
+रमेशराज
क्योंकर
संकट मोल लें कौन कटाए हाथ
क़लम
सम्हाले आज हम राजाजी के साथ |
+रमेशराज
चोर
पकड़वा चोर को क्यों ले संकट मोल
आज
सियासत है यही जय हो जय हो बोल |
+रमेशराज
कुर्सी
पाकर हो गये नेता मस्त-मलंद
लगे
गले में डालने जनता के अब फंद |
+रमेशराज
पूरी
दुनिया खोज लो हमसे बड़ा न वीर
हमने
खुद ही डाल लीं पांवों में जंजीर |
+रमेशराज
जिसके
भीतर था कभी नैतिकता का दम्भ
आज
बिकाऊ चीज है वह चौथा स्तम्भ |
+रमेशराज
मातम
के माहौल में मत खुश हो यूं यार
तेरी
भी गर्दन कटे कल रहना तैयार |
+रमेशराज
न्यूज़
चैनलो हो मगन अब तुम जिसके साथ
काटेगा
कल को वही सुनो तुम्हारे हाथ |
+रमेशराज
डूब
गया कुछ इस तरह सूरज खाकर मात
नही
सुबह इस रात की अब जो आयी रात |
+रमेशराज
हाथ-पांव
को बांधकर कहती है जंजीर
आज़ादी
असली यही सह ले थोड़ी पीर |
+रमेशराज
मरे
हुए जनतंत्र की लाश नोचते गिद्ध
विगत
साल उपलब्धि का सिद्ध हुआ लो सिद्ध |
+रमेशराज
कैसा
है ये आजकल नीच दौर हे राम !
पत्रकार
भी चाहता जनता बने गुलाम |
+रमेशराज
तीर
वक्ष को चीरकर कहता- ‘बन खुशहाल’
खेल
सियासी कर रहा जन के बीच कमाल|
+रमेशराज
अर्थवीर
के कर दिए हाथ पांव बेकार
नयी
आर्थिक नीति से गया सिकंदर हार |
+रमेशराज
कथित
आर्थिक प्रगति में हमसे थे इक्कीस
देख
लिया ‘सोमालिया ‘, देख रहे अब ‘ग्रीस ‘|
+रमेशराज
नई
आर्थिक नीति से सूखी सुख की झील
मति
के मारे कर रहे फिर भी गुड ही फील |
+रमेशराज
नयी
आर्थिक नीति से दूर नहीं पच्चीस
मार
कुल्हाड़ी पांव हम बन जायेंगे ‘ग्रीस ‘|
+रमेशराज
खम्बों
पर बिजली नहीं मिले न पानी शुद्ध
क्या
विकास आखिर हुआ कुछ तो बोल प्रबुद्ध ?
+रमेशराज
चाकू
बोले आजकल जा गर्दन के पास
अच्छे
दिन ही लायगा मेरा हर एहसास |
+रमेशराज
कैंची
कहे कपोत के पंखों पर कर वार
इस
सुराज में चीखना तेरा है बेकार |
+रमेशराज
भ्रष्टाचार
विरुद्ध नित राजाजी का शोर
जेल
न पहुंचा एक भी भ्रष्टाचारी चोर |
+रमेशराज
भू-प्राक्रतिक
रूप से छेड़ न तू इन्सान
वर्ना
झेल सुनामियां धरा-कम्प तूफ़ान |
+रमेशराज
अमिट
तृप्ति दूँगा उसे आये मेरे पास
मरुथल
सबसे पूछता किस-किस को है प्यास ?
+रमेशराज
कृषक करें नित ख़ुदकुशी देख फसल पर मार
भूमि-अधिग्रहण के लिए चिंता में सरकार |
+रमेशराज
हो जाता जब भी खड़ा कोई राम-समान
रावण का टूटे सदा अहंकार-अभिमान |
+रमेशराज
ऐसा ही कुछ देश में घटित हुआ इस बार
गिरता सूरज देख ज्यों औंधे मुँह अंधियार |
+रमेशराज
देश-भक्ति पर दे रहे अति झूठे व्याख्यान
पुजते अब गद्दार भी , कर माँ का गुणगान |
+रमेशराज
जिसके
भीतर हैं कई सदविचार के फूल
उस
पुस्तक पर अब जमी सिर्फ धूल |
+रमेशराज
दिखे
व्यवस्था चोर के अब भी अति अनुकूल
काले
धन की फ़ाइलें फांक रही हैं धूल |
+रमेशराज
एक
बूँद पानी नहीं जिस बादल के पास
बाँट
रहा है आजकल वह जल का विश्वास |
+रमेशराज
जन
के सूखे पेट को लगा भूख का रोग
ठीक
करेगा अब इसे राजाजी का ‘योग ’ |
+रमेशराज
जिसके
सँग में ‘रेप ’ नित , जो निर्धन-लाचार
उस
बेटी को ‘गोद ‘ कब, लेगी ये सरकार ??
+रमेशराज
जन
की गर्दन पर रखी नेता ने तलवार
तुरत
बना इस खेल में कवि भी हिस्सेदार |
+रमेशराज
सब
ने जिसको कल कहा देश-भक्त इन्सान
कुर्सी
पाकर आ गया असल रूप शैतान |
+रमेशराज
ऐ
ज्ञानी इस बात पर है कुछ पश्चाताप?
राजनीति
में फल रहे तेरे सारे पाप |
+रमेशराज
कवि
क्या फिर बौना हुआ तेरे मन का जोश ?
एक
बार फिर कह अरे खल को वतनफरोश |
+रमेशराज
राजनीति
के दीप में कहीं न बाती तेल
अंधकार
की मार को यूं ही प्यारे झेल |
+रमेशराज
भौंडी
रीति-रिवाज को क्यों कहता है धर्म
जन-पीड़ा करुणा
दया समझ अरे बेशर्म |
+रमेशराज
जन
को पहले चाहिए बिजली पानी अन्न
हाईरोड
बुलेट से फिर करना संपन्न |
+रमेशराज
जब-जब
मंहगाई करे जन के गहरे घाव
बोले
पिट्ठू मीडिया गिरे थोक में भाव |
+रमेशराज
यदि
ये कम होती नहीं महँगाई की मार
तो
फिर सच ये मानिए हर विकास बेकार |
+रमेशराज
अंधकार
अब कह रहा मुझ में धवल प्रकाश
मेरा
जल्वा देख लो, आलोकित आकाश |
+रमेशराज
काँटे
को ही हर समय बोल रहे जो फूल
आज
नहीं तो कल उन्हें पता चलेगी भूल |
+रमेशराज
शोले
की इस बात पर लोगों को विश्वास
जलन
नहीं हर एक को देगा राहत खास |
+रमेशराज
यारो
इस उपलब्धि का क्या है मतलब खास
गड्ढा
आज पहाड़ का देता है आभास |
+रमेशराज
अमिट
तृप्ति दूँगा उसे आये मेरे पास
मरुथल
अब कहता फिरे किस-किस को है प्यास ?
+रमेशराज
भूखे
पेटों के लिए जुटा दीजिये अन्न
मेरे
भारतवर्ष को तब कहना सम्पन्न |
+रमेशराज
बेमतलब
देता नहीं सुविधा साहूकार
हम
सब की कल देखना लेगा मींग निकार |
+रमेशराज
जाल
कहे बुलबुल जरा आ तू मेरे पास
तेरी
खातिर है यहाँ प्यारी दाना खास |
+रमेशराज
बादल
बन छाया धुआँ नभ पर चारों ओर
'अब होनी बरसात है' सत्ता करती शोर |
+रमेशराज
बगुला
मछली से कहे
- कर जल-बीच किलोल
राम-राम में जप
रहा , तू भी श्रीहरि बोल |
+ रमेशराज +
राजाजी
के राज में देश-भक्त वह यार
अपनों
पर ही जो करे घूम-घूम कर वार |
+ रमेशराज +
राजनीति
के मोर का इतना-सा है सत्य
जब
भारी सूखा पड़े तब करता है नृत्य |
+ रमेशराज +
दागे
गोले-गोलियां आज 'पाक ' जल्लाद
लाल
बहादुर की हमें रह-रह आती याद |
+ रमेशराज +
अंधकार
अब कह रहा
'दूंगा अमिट प्रकाश '
हैरत
की है बात पर लोगों को विश्वास !!
+ रमेशराज +
इतना
जनता मान ले कहती है तलवार
करूँ
क़सम खाकर करूँ अब गर्दन से प्यार |
+ रमेशराज +
सीने
पर सटकर कहे जनता से बंदूक
मेरे
आज सुराज में कोयल जैसा कूक |
+ रमेशराज +
भाले
भाषण दे रहे लायें हमीं सुराज
असरदार
है आजकल बस ये ही आवाज़ |
+ रमेशराज +
प्रणय-निवेदन बावरी
करले तू स्वीकार
चाबुक
चमड़ी से कहे मेरा सच्चा प्यार |
+ रमेशराज +
चाकू
बोले पेट के अति आकर नज़दीक
तेरी-मेरी मित्रता
सदा रहेगी ठीक |
+ रमेशराज +
हम
इस खूनी खेल को देखें बारम्बार
गुब्बारों
से आलपिन जता रही है प्यार |
+ रमेशराज +
गर्दन
तक आकर छुरी बनती गांधी-भक्त
हंसकर
बोले आजकल नहीं बहाऊँ रक्त |
+ रमेशराज
अंधकार
अब कह रहा दूंगा अमिट प्रकाश
पर
हैरत की बात यह जनता को विश्वास |
+ रमेशराज
नेता
कहता भाइयो सत्ता भले त्रिशूल
युग-युग से महफूज
हैं काटों में ही फूल |
+ रमेशराज
अब
हम नया विकास कर उगा रहे वो घास
जिसे
चरेंगे देश में आकर घोड़े खास |
+ रमेशराज
राजनीति
इस देश को ले आयी किस ओर
यारो
थानेदार को धमकाता है चोर |
+ रमेशराज
जिनके
सर पर बाल हैं उन्हें मिले फटकार
कंघे
सारे बँट रहे गंजों में इस बार |
+ रमेशराज
अंधकार
जिद पर अड़ा
' सूरज करे सलाम '
कल
को यदि ऐसा हुआ क्या होगा हे राम !
+ रमेशराज +
राजनीति
का देखकर आज रूप-आकार
नहीं
पता चलता हमें मुँह है या मलद्वार |
+ रमेशराज +
दोष
न दे सैयाद को भावुक मन इस बार
चिड़ियाएँ
करने लगीं अब पिंजरे से प्यार |
+ रमेशराज +
हो
निर्भय घूमें-फिरें भेड़-बकरियां गाय
मंच-मंच से आजकल
हर चीता समझाय |
+ रमेशराज +
सर
पर गांधीवाद का गुंडे के है ताज
चाकू
गौतमबुद्ध पर भाषण देता आज |
+ रमेशराज +
यारो
अब मकरंद के विष रचता है छंद
देश-भक्त कहता फिरे
अपने को ' जयचंद ' |
+ रमेशराज +
राखी
बंधवाकर कहो कब राखी है लाज ?
बना
हुमायूं-सा फिरे हर दुर्योधन आज |
+ रमेशराज +
प्यारे
जो है मान ले राजनीति का फूल
कुर्सी
तक जब जायगा तुरत बनेगा शूल |
+ रमेशराज +
जन
की गर्दन पर रखी नेता ने तलवार
तुरत
बना इस खेल में कवि भी हिस्सेदार |
+ रमेशराज +
कवि
ने जिसको कल कहा देशभक्त इन्सान
कुर्सी
पाकर आ गया असल रूप शैतान |
+ रमेशराज +
कवि
तुझको इस बात पर है कुछ पश्चाताप ?
राजनीति
में फल रहे तेरे कारण पाप |
+ रमेशराज +
कवि
क्यों अब बौना हुआ तेरे मन का जोश
एक
बार तो कह जरा खल को वतनफरोश |
+ रमेशराज +
अंधकार
की मार को यूं ही प्यारे झेल
राजनीति
के दीप में मिले न बाती-तेल |
+ रमेशराज +
कायर
रच सकते नहीं
, विद्रोहों के छंद
देख
बिलौटे को करे
, आँख कबूतर बंद |
+रमेशराज
पहले
से ही सोच ले
, तू जवाब माकूल
वधिक
तुझे हर बात पर
, भेंट करेगा फूल
|
+ रमेशराज +
राजा
का दरबार है,
सोच-समझकर बोल
चीख
यहाँ बेकार है,
सोच-समझकर बोल |
+ रमेशराज
अति
उन्मादी लोग हैं,
फिर से चारों ओर
एक
यही उपचार है,
सोच-समझकर बोल |
+ रमेशराज +
दुःख
की तीखी धूप में जब गुम हो मुस्कान
ममता
की छतरी तुरत माँ देती है तान |
+रमेशराज
कुटिल
चाल के खेल में माँ थी बेहद दक्ष
दो
बेटों के बीच झट लिया धींग का पक्ष |
+ रमेशराज +
क़ातिल
के दिल में कहाँ
, थोड़ा भी संवेद
केवल
जानें छैनियाँ , सुम्मी करना छेद |
+रमेशराज
पिंजरे
का जीवन जिए
,पंछी बन मजबूर
खग
किलोल से बोल से
, हुआ टोल से दूर |
+ रमेशराज +
देख
भेड़िया मस्त है
, आज बकरिया - भेड़
चाबुक
से चमड़ी कहे,
' मुझको पिया उधेड़ ' |
+रमेशराज
तूफां
के आगे झुकें
, अपने सभी कयास
शुतुरमुर्ग- सी गर्दनें
, सिर्फ हमारे पास |
+ रमेशराज +
एक
लड़ाई को भले आज गये हम हार
इस
सिस्टम को बींधने फिर से हैं तैयार |
+ रमेशराज +
हे
भावुक मन बोल अब
, किसका लेगा पक्ष
देख
कुल्हाड़ी खुश हुए
, जंगल में जब वृक्ष |
+रमेशराज
विक्रम
ने जब मेज तक
, कुछ खिसकाया माल
थाने
के वैताल ने
, पूछे नहीं सवाल |
+ रमेशराज +
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रमेशराज,
15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630